कोसों लंबी ख़ामोशी,
कोसों लंबी ख़ामोशी,
पसरी सी,
लिपटी एक तन्हाई
सब तो है आसपास
फिर क्यों सन्नाटा
कुंडली मारे बैठा है जीवन में
खता क्या रही मेरी
बस ये..
मैं सब का मन रखता रहा
और इस सब में
मैं ख़ुद ही खो गया कहीं
अब अपनी तन्हाइयों में
मैं ख़ुद से ही बात किया करता हूँ
पूछता हूं ख़ुद से कुछ
अनुत्तरित प्रश्न,
पूछता रहता हूँ, शायद
महाप्रयाण के पहले मिल जाए
मुझे उत्तर, उन प्रश्नों के
जिन्होंने मुझे
जीते ही मार कर रखा
उम्र भर !!!!
हिमांशु Kulshrestha