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6 Oct 2024 · 1 min read

कोशी मे लहर

कोसी के लहर जब उठल अपार,
कछार बस्तीमे मचि गेल हाहाकार।
धारामे बहल सभक सप्पन,
ले माटि बान्ह गाम अपन।

धारा कहैय— “हमर राह कठिन,
जे जियैय हमर संग, से बुझैय व्यथाक दिन।”
तट पर ठाढ़ रहैय लोक गुमशुम,
जब नदी खोंइछ समा गेल
ई जिनगीक सांझ-बिहान।

कहियो कोशी सुगंध बहाबैय,
कहियो सभ किछ नाश कराबैय।
लहर मे नुकल कतेक अफसाना,
कोनो प्रेमक कथा,कोनो दर्द पुराना।

तू बहऽ, कोशी, अपन मिजाज मे ,
कखनु शीतल धारा, कखनु जहर मे ।
हमरो हियाक दर्द बहा ले अब,
जहिना जिनगीक लहरि रहैय अब तरंग।

कोशीक लहर मे जीवन बहैय जाए,
ककरो सपन बाँचए, ककरो बहा ले जाए।
ई लहरि तन जिनगीक खेला,
कहियो अपना, कहियो पराया!

—-श्रीहर्ष—–

Language: Maithili
15 Views
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