कोर्पोरेट मन्त्र : सफलता के सूत्र
कॉर्पोरेट जगत में तनाव , प्रतिस्पर्धा , टारगेट हासिल करना इत्यादि आम बात है । रातों रातों की नींद का गायब होना कोई नई बात नहीं है । कॉर्पोरेट जगत के बड़े बड़े नाम अक्सर अपनी अपनी उत्पादों की बढ़त अपने प्रतिस्पर्धी के उत्पाद को नीचा दिखा करते रहते हैं । नतीजा अहंकार की लडाई ।
किसी के अहंकार को दायरे में रखना इन दिनों कॉर्पोरेट जगत में एक बड़ा मुद्दा बना हुआ है। कई बार कई मुकदमे अदालत में कई कई ऐसे मुकदमे लड़े जा रहे हैं, जो कि कॉर्पोरेट दिग्गजों के अहंकार की लड़ाई के परिणाम होते हैं। कॉरपोरेट जगत में किसी के अहंकार को दायरे में रखना करना एक बड़ी चुनौती है।
एक कहानी है, जो उन लोगों के लिए एक आंख खोलने वाली हो सकती है जो कॉर्पोरेट जगत को नियंत्रित कर रहे हैं। एक बार की बात है, एक सन्त थे। वह हमेशा अपने साथ एक खोपड़ी रखा करते थे। वह हमेशा अहिंसा की बात करते थे। वह एक मृदुभाषी व्यक्ति थे। हालाँकि, वह हमेशा जहाँ भी जाते, अपने साथ उस खोपड़ी को ले जाना नहीं भूलते थे। उनके शिष्य यह समझ नहीं पा रहे थे।
एक दिन उनके शिष्य ने उनसे यह सवाल पूछा कि वह हमेशा अपने साथ एक खोपड़ी क्यों रखते हैं? सन्त ने जवाब दिया कि एक दिन वह नदी में स्नान करने जा रहे थे। नदी के रास्ते में, उसके पैरों को इस खोपड़ी से चोट लगी। उन्होंने क्रोध में आकर इस खोपड़ी को उठाकर दूर फेक दिया। जब वो आगे बढ़े तो ख्याल आया कि वो खोपड़ी तो बिल्कुल शांत पड़ी हुई थी।
संत ने आगे बताया कि उन्होंने सोचा कि यह खोपड़ी किसी दिन एक जिंदा महिला या पुरुष रही होगी। इस खोपड़ी ने जरूर किसी को जवाब दिया होगा, जो उस पर हंस रहा होगा। इस खोपड़ी ने अपने अहंकार को बढ़ाने के लिए किसी को भी रुलाया भी होगा। इस खोपड़ी ने किसी को किसी चीज से ईर्ष्या करते हुए फटकार लगाई होगी। किसी को मारा भी होगा, किसी को लताड़ा भी होगा। और आज जब मैंने इस खोपड़ी को दूर उठाकर फेक दिया है फिर भी यह चुप है। भले ही मैंने इस खोपड़ी को अपने पैर से मारा है, यह प्रतिक्रिया नहीं दे रही है। मैं इस खोपड़ी को अपने साथ याद दिलाने के लिए रखता हूं कि एक दिन मैं भी इस खोपड़ी की तरह बन जाऊंगा। यदि कोई मुझे डांटता है, तो यह मेरे अहंकार की निरर्थकता की याद दिलाती है। यदि कोई मुझ पर हंसता है, तो यह मेरे अहंकार को शांत करती है। मैं इस खोपड़ी को हर समय केवल अपने अहंकार को शांत करने की के यंत्र के रूप में इस्तेमाल करता हूँ।
कॉर्पोरेट जगत में, अप्रत्याशित परिणाम, प्रतियोगिता आदि के परिणामस्वरूप अक्सर ईर्ष्या, जलन, असुरक्षा अहंकार के मुद्दे आदि ओरतिफलित होते रहते हैं। अगर किसी को याद रहे कि एक दिन वे भी इस खोपड़ी की तरह हो जाएंगे, जो कुछ भी नहीं करेगा, किसी की निंदा नहीं करेगा, किसी का उपहास नहीं करेगा, किसी से अपनी तुलना नहीं करेगा, किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं करेगा । वह शांत और नियंत्रित रहेगा। यह कहना कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एक शांत दिमाग हमेशा बेहतर निर्णय लेता है। जो अपने अहंकार को दायरे में रखना जानता है, वह खुद को, अपने निर्णय को और अपनी कॉर्पोरेट जिम्मेदारियों को भी बेहतर तरीके से नियमित करना जानता है, जो कॉर्पोरेट जगत में सफलता की कुंजी है।
अजय अमिताभ सुमन