तृष्णा इंसान
नूतन उनमुक्त वजनी हयात में ,
बचकर रहना तृष्णा इंसानों से ,
शत्रुता हो या मित्रता कभी ना ,
करना किसी तृष्णा इंसानों से।
सूरदास होते तृष्णा इंसान,
बस अवलोकता प्रलंभ इन्हें,
प्रलंभ के समादर ही ,
भूल जाते रिश्ते – नाते।
पैसा, पैसा, पैसा करते
पैसा ही जैसे जीवन इनका ,
पागल स्नेही पैसा का वह ,
वही होता है तृष्णा इंसान।
तृष्णा इंसानों को सम्प्राप्ति ,
ऐशो – आराम शोहरत है ,
पर न सम्प्राप्ति इन्हें कभी ,
द्विय लम्हें की सुख – चैन है।
विभूति का ना तृष्ण करो ,
जीने का उचित मार्ग चुनो ,
द्विय लम्हें का चैन पाओ तुम ,
पर ना कभी तृष्णा कहलाओ।
अमुल्य रत्नों से भी विपुल ,
अनर्घ होती हमारी जिंदगी ,
अपना हयात का तृष्णा करो ,
पर ना त्रुटिपूर्ण कृत्य करो।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या