कोरोना
कभी होता था सन्नाटा रातों को जो
आज फैला चारों तरफ दिन में भी वो
रोशन होते हुए भी दिखता सुनसान खामोश है दिन
ना स्कूल, ना दफ्तर ,ना मीटिंग कोई
ना मंदिर ,ना मस्जिद ,ना गुरुद्वारा कोई
छोड़ रस्मों रिवाजों को घर में बैठे हैं अब
जाने अपनी बचाने के चक्कर में सब
बात करते थे जादू की झप्पी की जो
आज मिलने से कतराते फिर रहे हैं वो
पिज़्ज़ा बर्गर चाऊमीन खाते थे जो
दाल रोटी सब्जी खाते हैं वो
मॉल डिस्को थिएटर जाते थे जो
रामायण महाभारत के दर्शक है वो
खौफ कोरोना का ऐसा छा गया
आदमी चारदीवारी की कैद में आ गया
केशी गुप्ता
लेखिका समाज सेविका
द्वारका दिल्ली