कोरोना
॥कोरोना॥
जीवन चल रहा था अपनी रफ़्तार से,
धरती कराह रही थी दोहन की मार से,
पशु-पक्षी भयभीत थे आदमियों के भरमार से,
अब तो बस उम्मीद बची थी परवरदिगार से,
दुनिया का हाल देखकर रोना आ गया
हम सबको पाठ पढ़ाने ‘कोरोना’ आ गया।
आदमी को आदमी से जुदा कर दिया,
घर में सभी को कैद करके परदा कर दिया,
छोटे से वायरस ने हक अदा कर दिया,
आदमी को उसकी करतूत पे शर्मिंदा कर दिया,
बच्चे-बच्चे को अब हाथ धोना आ गया,
हम सबको पाठ पढ़ाने ‘कोरोना’ आ गया।
परिवार के सदस्य अब नज़र आने लगे,
खुदगर्जों के होश जब ठिकाने लगे,
आसमान में पक्षी फिर मडराने लगे,
जानवर भी बस्तियों में आने-जाने लगे,
दिल पसीजना पलके भिगोना आ गया,
हम सबको पाठ पढ़ाने ‘कोरोना’ आ गया।
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रचनाकार- रूपेश श्रीवास्तव ‘काफ़िर’
स्थान- लखनऊ (उ०प्र०)