कोरोना
आया अदृश्य वायरस , हाथ सैनेटाइज कर।
हाथ सैनेटाइज कर, खूब सैनेटाइज कर ।।
मास्क को मुख पर लगा , हाथ ग्लोब्स पहन
कपडे सैनेटाइज कर, सोशल डिस्टेंस रख
मैं भोगूँ अज्ञातवास , क्योंकि दूर तुमसे हूँ
कैसे पूरा हो अज्ञात वास , पा भी खोया हूँ
सोशल डिस्टेन्सिंग है कवच , जो सुरक्षा करे
हाथ सैनेटाइज कर , मास्क सैनेटाइज कर
आया अदृश्य वायरस , हाथ सैनेटाइज कर।
हाथ सैनेटाइज कर, खूब सैनेटाइज कर ।।
राम पांडव जैसा अज्ञात वास, भोगा नहीं
मिलनसार भारतीय समाज ने , सोचा नहीं
पार्क बेन्चे, खेलमैदान,पब्लिक पैलेस खाली
मन हो गया बैचेन , दिमाग ख्याली ख्याली
सीमाएँ सबकी तय हो , भूगोल बदल गया
क्या करूँ क्या न ,जनमानस को सजग कर
आया अदृश्य वायरस , हाथ सैनेटाइज कर।
हाथ सैनेटाइज कर, खूब सैनेटाइज कर ।।
धो धो कर हाथ , दिमाग अपना धुल गया
समझे अपने को दादा , पोल खुल गया
मर्मान्तक शोक गीत , मजदूर मरे राह में
एक दो नहीं , हजारों शामिल पदयात्रा में
मरे तो अपनों बीच, सोच बढ चले पगडण्डी
वक्त के मारे मरे भूखे, मदद को आगे बढ़
आया अदृश्य वायरस , हाथ सैनेटाइज कर।
हाथ सैनेटाइज कर, खूब सैनेटाइज कर ।।
देख संकट मडराता , आत्मा को सैनेटाइज किया
बढे हाथ मदद को , आगे जरूरत का दान किया
भारतीय संस्कृति का मूलतत्व , यहीं है आधार
बढे हाथ मदद को जब , तू हाथ आगे कर
आया अदृश्य वायरस , हाथ सैनेटाइज कर।
हाथ सैनेटाइज कर, खूब सैनेटाइज कर ।।