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11 Dec 2020 · 1 min read

कोरोना मे दिन मैंने कैसे काटे

कोरोना मे दिन मैंने कैसे काटे
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पूछो मत,कोरोना मे दिन कैसे मैंने काटे,
हाथो मे पड थे छाले,पैरों में चुभे थे कांटे।
दर दर ठोकरें हर जगह मुझे खानी पड़ी थी,
ये मेरे लिए मुश्किल की बहुत बड़ी घड़ी थी।

घर में बन्द था,नहीं जा सकता था मै बाहर,
बच्चे भी मना कर रहे थे,जाओ नहीं बाहर।
घर में बैठ कर लिखता था मै कुछ कविता,
तड़फ रहा था मै सुने तो मेरी कोई कविता।

कर रहा था मै घर से ही दफ्तर का काम,
मिल रहा न था मुझे तनिक भी विश्राम।
बना लिया था घर को मैंने अपना कार्यलय,
मंदिर भी बन्द थे इसलिए घर बना देवालय।

मुंह पर मास्क लगाना,रकखी दो गज की दूरी,
समझो इसे डर मेरा,या समझो मेरी मजबूरी।
घुटता था दम मेरा काम करने में होती परेशानी,
जान है तो जहान है इसे समझो न मेरी नादानी।

कुछ फरमाइशें लेकर मतलब से कोई मिलने आया,
मैंने जिनकी की थी सहायता कोई काम न मेरे आया।
ले रहे थे सब अपने अपने मतलब के खर्राटे,
पूछो मत कोरोना मे दिन मैंने किस तरह करे।

आर के रस्तोगी गुरुग्राम

Language: Hindi
2 Likes · 2 Comments · 440 Views
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