कोरोना दोहा दशक (भाग-१)
१.
कोरोना ने दे दिया, प्रकृति का संदेश।
अर्थव्यवस्था ढह गई, रुका विकास विशेष।।
२.
प्रकृति से खिलवाड़ का, हुआ है ये अंजाम।
पहिया रुका विकास का, रुका ये विश्व तमाम।।
३.
चीन और यूरोप ने, समझा जिसे विकास।
प्रकृति ने समझा दिया, वही है बीज विनाश।।
४.
कोरोना है बानगी, प्रकृति का प्रतिकार।
यदि अब भी सुधरे नहीं, तो होगा संहार।।
५.
लॉकडॉउन से जब किया, कोरोना पर वार।
आ जमात ने कर दिया, सब गुड़ गोबर यार।।
६.
लॉकडाउन में बैठ घर, मन में किया विचार।
क्या क्या ऐसा किया है जो, मचा है ये संहार।।
७.
घर में बैठ विचारिए, निज जीवन का सत्य।
कितने किए हैं पाप और, कितना जिए असत्य।।
८.
संकट में है विश्व सब, फैला चहुंदिशि क्षोभ।
राजनीति की रोटियां, सेंक रहे ये लोग।।
९.
कोरोना संक्रमण से, हुआ त्रस्त संसार।
लाशों पर तो मत करो, राजनीति इस बार।।
१०.
कोरोना तो निमित्त है, प्रकृति का संग्राम।
जो भी कृत्य किए यहां,उनका ही परिणाम।
© आचार्य विक्रान्त चौहान