कोरोना का साया
चिठ्ठी आयी है
संग वायरस लाई है
भाषा संक्रमित है
हर कोई भ्रमित है
प्रेषक और प्रेषित की
नहीं कोई पहचान है
पता भी अनजान है
जग सारा परेशान है
गरीब हुईं बस्तियां है
झुकी हुई हस्तियां है
जान पे बन आई है
प्राणों की दुहाई है
अहम से भरे थे
भीतर से डरे थे
खोखले इरादे थे
कोरे कागज़ से वादे थे
शांति से निराशा थी
युद्ध में ही आशा थी
गुटों में बंटे थे
मुद्दों पे डटे थे
भेद और भी गहराएगा
रहस्य, रहस्य ही रह जाएगा
कोई घुटन से घबराए गा
कोई तिलमिलाहट में छटपटाए गा
युद्ध फिर से न हो
शांति की आढ़ में
बहुत कुछ बह गया
इस वीभत्स रार में
पलक झपकते वर्तमान,
भूतकाल हो जाएगा
स्मृतियां हर पल पीछा करें गी
मरने वाला लौट नहीं पाएगा।