कोरोना काल
मैं इसे अच्छा कहूँ या फिर कहूँ बुरा
मानवता का वक्त काल ने लिया चुरा
समय मिला अपनों को
समय मिला सपनों को
जीव आजाद हुए पिंजरों से
लौह-सलाखों की नजरों से
वात शुद्ध हुई सैंकड़ों वर्ष बाद
कितने रिश्ते भी हो गए आबाद
लाखों इंसान ग्रास बने काल का
कुचक्र समय की टेढ़ी चाल का
अपनी जड़ों को जब पहचाना गया
खाक पुरानी को जब छाना गया
जी,यह हंसने का नहीं रोना काल था
अच्छा या बुरा, जो भी कोरोना काल था।