कोरोना – करोना – करो ना – का रोना
मित्रों आज मैं आप लोगों को कभी किसी की गुज़री जवानी के दिनों का एक किस्सा सुनाता हूं । सात पहाड़ियों के पार एक शक्तिशाली देश में एक सुंदर राजकुमार ( prince Charming ) रहता था जिसकी वीरता एवं तीरंदाजी के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे ।
उस देश का अपने शक्तिशाली पड़ोसी देश के राजा से कई पीढ़ियों से बैर चला आ रहा था । और अक्सर वे एक दूसरे के ऊपर आक्रमण करते रहते थे। पड़ोसी देश के राजा की एक जवान बेटी थी जिस राजकुमारी की सुंदरता एवम गुणों के चर्चे दूर-दूर तक फैले हुए थे । एक दिन राजकुमार ने पड़ोसी देश के राजा के पास उसकी बेटी के संग अपने विवाह का प्रस्ताव यह कहते हुए भेजा कि यदि उन दोनों का विवाह हो जाएगा तो इससे दोनों देशों के बीच में संबंध मधुर हो जाएंगे और वे बैर भूलकर संबंधी हो जाएंगे । वह उनकी राजकुमारी बेटी को बड़े सुखचैन एवं राजसी ठाट बाट से पटरानी बना कर रखेगा।
मगर इस प्रस्ताव को भेजते समय उस राजकुमार के दिल में खोट छुपा था । वह विवाह के पश्चात पड़ोसी देश से बदला लेने की मंशा से उनकी राजकुमारी से विवाह करना चाहता था और विवाह उपरांत वह राजकुमारी को सता सता कर अपने पुरखों के बैर का बदला लेने की भावना से विवाह करना चाहता था । पड़ोसी देश का राजा उसके मन की इस दुर्भावना को नहीं भांप सका और उसने उस राजकुमार से अपनी बेटी का विवाह कर दिया।
बड़ी ही शानो शौकत से उन दोनों का विवाह संपन्न हुआ दोनों ओर के परिवारों ने बढ़-चढ़कर उत्साह से विवाह में हिस्सा लिया । विवाह उपरांत विदाई के बाद राजकुमारी अपने ससुराल आ गई और वे लोग राजा – रानी बनकर साथ साथ रहने लगे । दोनों ने एक दूसरे के साथ संग संग जीने मरने की कसमें खाई ।
पहले ही दिन राजा ने अपनी रानी से कहा मैं तुम्हारी जीवन भर हर बात मानूंगा बस तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी , मुझे तीरंदाजी का बहुत शौक है मैं रोज तुम्हें अपने सामने खड़ा कर अपने निशाने से तुम्हारी नथ के छल्ले के बीच में से अपना तीर निकालूँ गा ।
कुछ संकोच के साथ रानी बोली आप इतने बड़े तीरंदाज हैं मुझे आप पर गर्व एवम पूर्ण विश्वास है और आपकी इस शर्त को मैं मानने के लिए मैं तैयार हूं इसके बदले में आप भी तो मेरी हर बात मानने और मुझे पटरानी बनाकर रखने के लिए तैयार हैं ।
अब अगले दिन सुबह राजा किले के एक बुर्ज़ पर तीर कमान लेकर खड़ा हो गया और किले के दूसरे छोर पर स्थित एक परकोटे पर रानी को खड़ा कर दिया गया । राजकुमार ने इधर कमान से तीर छोड़ा जो सनसनाता हुआ सीधे रानी की नथ के छल्ले के बीच से होता हुआ पार कर गया । ज़रा सी निशाने में चूक से रानी की जान जा सकती थी । जब तक तीर छल्ले को पार नहीं कर गया रानी अपनी सांसे रोक कर अपनी जान की खैर मनाती रही । अगले दिन फिर सुबह राजा बुर्ज़ पर तीर कमान लेकर खड़ा हो गया और रानी सुदूर परकोटे पर खड़ी हो गई , तीर चला , निशाना सही लगा और तीर नथ को पार कर गया । अब यह सिलसिला नित्य प्रति दिन के लिए चल निकला , नित्य प्रतिदिन राजा बुर्ज पर आता और रानी मन ही मन डरती हुई अपनी जान हथेली पर रखकर परकोटे पर आकर खड़ी हो कर अपनी नथ के बीच से तीर का निशाना लगवाती । फिर राजा प्रजा के अन्य कार्यों में व्यस्त हो जाता और रानी भी पटरानी बनकर अपना दिन बिताने लगती । महल में उसे खाने-पीने रहने घूमने फिरने ठाट बाट आदि में कहीं कोई कमी नहीं थी । सारे दास दासियां उसका आदेश मानते थे पर दिन प्रतिदिन इस चिंता की वजह से कि कहीं अगर किसी दिन राजा का निशाना चूक गया तो उसकी जान चली जाएगी , इस बात की चिंता रानी को सारे सुख सुविधाओं केे होने के बावजूद सुखाय दे रही थी । इधर इस घटनाक्रम को होते काफी अरसा बीत गया ।
एक दिन रानी के पिता के मन में विचार आया कि उसे अपनी अपनी बेटी का हाल-चाल पता करना चाहिए । इसके लिए उसने अपने विशेष गुप्तचर को पड़ोसी देश में टोह लेने के लिए भेजा ।वहां उसने देखा कि राजकुमारी की देखभाल में ससुराल में कहीं कोई कमी नहीं है वह बड़े ठाट बाट से रह रही है पर राजकुमार की तीरंदाज़ी वाली शर्त निभाने की चिंता के कारण उसका वजन दिन प्रतिदिन घटता रहा जा रहा है और इसी चिंता में घुुुट घुट कर वह कृष काय हो गई है । यह सब हाल जानकर उस गुप्तचर ने अपने राज्य में लौटकर उस राजकुमारी के पिता राजा को सारा विवरण बताया कि वैसे तो उनकी बेटी ससुराल में बड़े सुख चैन से रह रही है पर किस प्रकार तीरंदाजी की शर्त पूरी करवाने में उनकी बेटी चिंता में घुली जा रही है और उसका वजन दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है ।
राजा ने गुप्तचर से प्राप्त पूरा विवरण अपनी पत्नी को बताया कि किस प्रकार ससुराल में उनकी बेटी नथ में से तीर पार करवाने की शर्त को पालन करने में चिंताग्रस्त हो कर सूखती जा रही है । यह सुनकर उनकी पत्नी ने कहा कुछ दिन और ठहरो देखा जाएगा और यह कहकर वह निश्चिंत होकर सो गई ।
उधर पड़ोसी देश में राजा एवम रानी के बीच तीरंदाजी का कार्यक्रम तय शर्त के अनुसार चलता रहा । एक दिन राजकुमार जो अब राजा बन गया था किसी गम्भीर राज्य कार्य में व्यस्त था जिसकी वजह से वह तीर चलाने बुर्ज पर नहीं जा सका । काफी देर बीत जाने के बाद सभागार में रानी ने संदेश भिजवाया कि वे राजा से तीर का निशाना लगवाने के लिए सोलह सृंगार कर के परकोटे पर खड़ी हो कर राजा की बाट जोह रहीं हैं । राजा ने कहलवा दिया कि आज वे व्यस्त हैं और निशाना नहीं लगाना चाहते । इसपर रानी संदेश भिजवाया कि जब तक उनके राजा शर्त के अनुसार उनकी नथ में से तीर नहीं पार कर देंगे वो अन्न जल ग्रहण नहीं करेंगी । अपनी पटरानी का यह संदेश पा कर झल्लाते हुए राजा ने बुर्ज़ पर जाकर तीर कमान ऊठाया और निशाना लगा कर नथ में से तीर पार कर कर फिर सभा स्थल में आ गया ।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ राजा राजकीय कार्यों में अधिक व्यस्त होने लगा और धीरे धीरे राजा का तीरंदाजी के प्रति रुझान कम होने लगा उधर रानी को उसकी तीरंदाजी के निशाने पर पूर्ण भरोसा हो गया और उसको इसमें इतना रोमांस मिश्रित रोमांच का आनन्द आने लगा कि जब जब राजकुमार व्यस्तता का बहाना कर तीरंदाजी को टालना चाहता तो रानी सज धज कर राजा को उसकी शर्त का हवाला देकर कहती
‘ चलो तीर पार करो ना ‘
एवम अन्न जल ग्रहण करना छोड़ जबरदस्ती से तीर कमान चलवा कर अपनी नथ में से तीर पार करवाने लगी । रानी की राजा से तीर चलवाने की ज़िद्द इतनी पक्की थी कि अगर कभी किसी दिन राजकुमार व्यस्तता के बीच यदि दिन में तीर ना चला पाए तो वह रात के अंधेरे में परकोटे पर पर नथ पहन कर खड़ी हो जाती और एक दीपक के लौ की रोशनी में अपनी नथ को दर्शा कर राजकुमार से तीर चलवाती थी । वह रोज़ परकोटे पर सृंगार करके आ जाती और फिर राजा से कहती
‘ चलो ना आज फिर से तीर पार करो ना । ‘
राजा जी समय बीतने के साथ-साथ वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हो चले थे पर रानी की शर्त अपनी जगह विद्यमान थी जिसे वे थके हारे मनसे पूरी तरह से निभा रहे थे ।
कुछ साल बीते एक बार उनके देश में कोरोना वायरस की महामारी का प्रकोप फैल गया चहुँ ओर हा हा कर मच गया जिसके कारण राजा की व्यस्तता बहुत बढ़ गयी वो दिन में मण्डलीय स्तर की बैठकों में और महामारी के निर्देशों को कार्यवान्वित करवाने में खो सा गया । उधर दिन रात रानी की वही रट
‘ चलो ना आज फिर से तीर पार करो ना ‘
रोज-रोज किले के बाहर कोरोना की आपदा एवम किले के भीतर करो ना – करो ना , का रोना सुन सुन कर राजा को लगा कि जिस भयमुक्त अधोगति को उसकी तीरंदाज़ी प्राप्त हुई है उसी गति को यह कोरोना का रोना भी प्राप्त हो गा ।