कोरोना और हम
यह इल्तजा है रब मेरे, अब तो मेरी पेशानी के शिकन कम कर दे ।
खत्म कर इस बीमारी को दुनिया से, अब तो खुदा मेरे रहम कर दे ।।
कि भूखों गरीबों और मजदूरों के, जमीर को अब और ना शर्मसार कर ।
मांगती है पनाह सारी मखलूक, सो इनके दामन को अब तो खुशियों से भर दे ।।
तेरी इस सजा से घबराई है इंसानियत सारी, अब तो मगफिरत कर दे ।
अब तो बैठे हैं शाह-ए-वक्त भी तेरे आसरे, कुछ तो उन पर भी नजर कर दे ।।
और फिर से लौटा दे इंसानी जिंदगीयों को, पटरियों पर या ईलाही ।
कुछ तो हम गरीबों की भी सोच, सो बस अब हमारी भी लाज रख दे ।।
एक शेर कोरोना मे व्यथित मजदूरों की नजर कि :
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उन्हें बड़ी उम्मीद थी के हुक्मरान हमारे सब संभाल लेंगे ।
पर किसे पता था छीनकर थाली से निवाले पैरों में यूं छाले देंगे ।।
और आखिरी का एक शेर उस ईश्वर की परकाष्ठा को बताते हुए कि :-
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कल तक जो चांद पर एक नई दुनिया बसाने की बात करते थे ।
आज चांद की तरफ रुख कर, अपनी पुरानी दुनिया को बचाने की दुआ करते हैं ।।