कोरोना एक सीख
अमर कोई नही इसका हमको पूरा ज्ञान था l
पर हाँ अपनी हर एक बात पे हमको गुमान था l
बंगला,गाड़ी ,जहाज से कम में हम कहाँ संतुष्ट थे ?
कामयाबी की चकाचौंध से बन गए हम धृतराष्ट्र थे l
जानवर पंछी सब मनोरंजन के साधन थे l
धरती पर अपना एकमेव राज मानने वाले इंसा ही तो थे l
कोरोना का ऐसा प्रकोप आया l
इंसा पिंजड़े में और पंछी ने खुला आसमान पाया l
प्रकृति निखरने लगी और पंछी चहचहाने लगे l
यह देख पिंजडे में बंद इंसा ये सोचने लगे l
अपने ही हाथों हमने इस सुंदर प्रकृति को तोड़ा है l
सीमीत कर दी जल की धारा और पारितंत्र को छेड़ा है l
अपने ही हाथों हमने अपनों की श्मशान बना डाली l
इस बीमारी के चलते तो अपनों की राख भी ना मिल पानी l
रोते रोते साल बीत गया, अब भी वही कहानी है l
ईश्वर हमको माफ करे,अपनी गलती हमने मानी है l