कोरोना”एक नवगीत
विधा-नवगीत
रस-हास्य
शीर्षक:कोरोना
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नाम मे’रा तो कोरोना है,अपना भी तुम बतलाओ।
मिलना हो तो मिलो प्रेम से,घर से तो बाहर आओ।।
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जीवन के सारे झंझट से,
मुक्त तुम्हें कर दूँगा मैं,
जीवन में बस अंधकार से,
पल पल को भर दूंगा मैं।
आओ मुझको गले लगाओ ।
मिलना हो तो प्रेम से,घर से तो बाहर आओ।।
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जो जन भी शरणागत आया।
मैंने नहीं तनिक तड़फाया।।
मैं तो इक समदर्शी ठहरा,
ग्रास बनाकर पार लगाया।।
अपना अपना हिस्सा पाओ।
मिलना हो तो मिलो प्रेम से,घर से अब बाहर आओ।।
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डाक्टर से परहेज़ मुझे है।
सोशल दूरी नहीं मुनासिब।
जो भी मुझसे हाथ मिलाता,
लगता मुझको वो ही बाजिब।
आओ मुझसे हाथ मिलाओ।
मिलना हो तो मिलो प्रेम से घर से अब बाहर आओ।।
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साबुन से मुझको एलर्जी।
मैं जीता हूं अपनी मर्जी।।
सहज निभाना मुझसे रिश्ता।
जुड़ा हाथ से मैं बाबस्ता।।
बहुत तलों पर मैं मिलता हूं।
हाथ लगाओ मैं फलता हूं।।
अपना भी तुम हाथ लगाओ।
मिलना हो तो मिलो प्रेम से घर से तुम बाहर आओ।।
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भीड़ बहुत मुझको प्यारी है।
चाल बहुत मेरी न्यारी है।।
बिना शोर के डालूं डांका।
चीन देश मेरा है आका।
चाहें जो आरोप लगाओ।
मिलना हो तो मिलो प्रेम से घर से तुम बाहर आओ।।
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??अटल मुरादाबादी?❤️