कोरी आँखों के ज़र्द एहसास, आकर्षण की धुरी बन जाते हैं।
कोरी आँखों के ज़र्द एहसास, आकर्षण की धुरी बन जाते हैं,
दर्द की असीमता को लांघने, दावे अनगिनत बिछ जाते हैं।
सत्य के शांत तटों से हीं, असत्य के तूफ़ान आ टकराते हैं,
आस्था के फूल हीं अक्सर,आश्वस्त धोखों से रौंदे जाते हैं।
पतझड़ों को भी लूटने यहां, अजनबी मौसम चले आते हैं,
उजड़े उस घर की ईंटें भी, कुछ लोग चुरा ले जाते हैं।
मौन के निश्छल आवरण, शब्दों के वाणों से भेदे जाते हैं,
और नग्न हुए जज़्बातों के तब, सम्मान हरण हो जाते हैं।
स्तब्ध चित्त की यात्रा में, स्वयं की राहें शामिल कर जाते हैं,
और मोड़ पर अगले आते हीं, उसकी मंजिल पर प्रश्न उठाते हैं।
ठहरी उस श्वास की आशाओं को, एक पल के प्रकाश से मिलवाते हैं,
फिर डगमग भरते उन क़दमों से, उनकी जमीं भी छीन ले जाते हैं।
वादों के मलिन आशियाने, थके कारवां के समक्ष ले आते हैं,
तिरस्कृत कर चौख़ट पर अपनी, हर आस से विश्वास उठाते हैं।
मृदु हृदय की कोमलता तब, कटु निर्णयों के संरक्षण से खुद को बचाते हैं,
और आँखों के वो जर्द एहसास भी, ताप में अग्नि के भस्म हो जाते हैं।