कोमल हृदय – नारी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक -अरुण अतृप्त
*कोमल हृदय -नारी *
नारी का तन झूम उठे
तो समझो झंकृत संसार हुआ ,
जल भी झूमा नभ भी झूमा
है नृत्य मग्न संसार हुआ
चन्दा सी थिरकन थिरकी
अंग अंग है चपल हुआ ,
नारी का तन झूम उठे
तो समझो झंकृत संसार हुआ
बाल सहज क्रीडा उपजी
मन कोमल तन कोमल
भाव जगा , मैं एक लता सी
शरमाई , अंग अंग जब शब्द सजा
नारी का तन झूम उठे
तो समझो झंकृत संसार हुआ