*कोपल निकलने से पहले*
ख़ामोश है!
न समझ कि मन में बात नहीं|
सूरज छिपा है!
न समझ कि है ही नहीं|
असफल हुए आज तो क्या..
और भी मौक़े मिलेंगे आज़माने को|
ख़्वाब तो बुन, ऐ दोस्त!
कोशिश तो कर ज़माने को दिखाने को|
बाँस के बीज को भी लगते हैं कई वर्ष
कोपल निकलने से पहले
ज़मीं के नीचे जड़ फैलाने को|