कोई ग़ाफ़िल कहाँ भला जाए
जी मेरा भी सुक़ून पा जाए
तेरा जी भी जो मुझपे आ जाए
काश आ जाऊँ तेरे दर पे मैं और
वाँ मेरा गाम लड़खड़ा जाए
जाने से तेरे जाए जी मेरा
सोचता हूँ के तेरा क्या जाए
मैं कहूँगा के मैं कहूँगा भी क्या
मुझसे कहने को गर कहा जाए
क्या करेगा तू उसका मोलो फ़रोख़्त
जो दिखे भर के जी पे छा जाए
न तआरूफ़ ठहरा तुझसे भी तो
कोई ग़ाफ़िल कहाँ भला जाए
(गाम=क़दम, तआरूफ़=परिचय)
-‘ग़ाफ़िल’