कोई हो जो इस पर से पर्दा उठा ले।
गज़ल
122……122…….122……122
कोई हो जो इस पर से पर्दा उठा ले।
नहीं लौट कर आते क्यों जाने वाले।
थी जिसके सहारे ये जीवन की नैया,
गया छोड़कर कौन इसको सँभाले।
जो आया था बनके भिखारी मेरे घर,
वही आज मुझको ही घर से निकाले।
नहीं चाहिए कुछ भी हमको जियादा,
मिले तन के कपड़े, हो छत दो निवाले।
यहां मौत है बच के आना है मुश्किल,
बवंडर में जीवन तू ही अब बचाले।
पिता माँ का साया हमेशा रहा है,
उन्हीं के हैं आशीष मुझको सँभाले।
मैं प्रेमी तुम्हारा यही इल्तिजा है,
कभी आ भी जाना चले जाने वाले।
……✍️प्रेमी