कोई शिकवा न गिला
कोई शिकवा न गिला चाहती है
ज़िन्दगी तेरी रज़ा चाहती है
आज की रात अमावस जैसी
तेरे चेहरे से ज़या चाहती है
अश्क़े ग़म आहो फुगाँ तन्हाई
जाने क्या जाने वफ़ा चाहती है
वो मिरी माँ है मिरे हिस्से मेहर घड़ी रब से दुवा चाहती है
ज़ख्मे उल्फत है भरे तो कैसै
चोट गहरी है दवा चाहती है
मौत आकर मुझे आलिंगन कर
ज़िन्दगी रूप नया चाहती है
मै भी इक ऐसा दिया हूँ आज़म
,जिन चिरागो को हवा चाहती है याक़ूब आज़म……….0789793216021 August 2013 at 13:26·