कोई वादा न हमने तुमसे था किया
कोई वादा न हमने तुम से था किया
कोई वादा न तुमने हमसे था किया
पांव रुकता रहा मगर तेरी हर एक आहट पे
भीड़ में भी अलग से तुझे हमने पहचान लिया
जब भी देखती हूं तुझको चौंक जाती हूं मैं
तेरे अक्स में हर बार ही खुद का दीदार किया
वो कौन सा वक़्त था जहां मिला था तू
और दिल ने रुक कर तुझे था चूम लिया
रात था शायद जो अब भी गुफ्तगू करता है
सन्नाटे की दीवारों में तेरी यादों ने मुझे कैद किया
अब न वो रात है जाना न वो बात रही बांकी
बस चांद तुझको तो चातक खुद को कर लिया
~ सिद्धार्थ