कोई मंदिर बनाता है….
कोई मंदिर बनाता है, कोई मस्जिद सजाता है
कोई पत्थर चलाता है कोई गोली चलाता है।
ये कैसी आग है फैली जहां मे इस कदर भाई
न कोई जी ही पाता है न कोई मर ही पाता है।
कभी मंदिर को लड़ते हैं, कभी मस्जिद को लड़ते हैं
न जाने क्यूँ यहाँ हम तुम बिना कारण झगड़ते हैं।
न तुम हो आसमां के और ना हम ही तली के हैं
तो क्यूँ इस चार दिन की जिन्दगी पे हम अकड़ते हैं।
जटाशंकर”जटा”
३१-०१-२०२०