कोई भूख से मर कर मशहूर न हुआ
कोई भूख से मर कर मशहूर न हुआ,
कोई आंख मार के मशहूर हो गया।
इस खबर से बेख़बर सरकार रह गयी,
उस गरीब से न जाने ,क्या कसूर हो गया।
न इलाज ,न निवाला ,ऊपर से घर का दीवाला।
परिवार को क्या खिलाये ,बेरोजगार कामवाला।
जीने की चाह में जो ढो रहा था मुश्किल,
उसी से उसका एक टुकड़ा दूर हो गया।
कोई भूख से मर कर मशहूर न हुआ,
कोई आंख मार के मशहूर हो गया।
कागजों में नसीबी बख्शी है सरकार ने।
पर अपनी बदहाली दिखाई है कामगार ने।
परिवार की खुशियों के लिए जी रहा था वो,
बेरोजगारी में ये सपना ,चकनाचूर हो गया।
कोई भूख से मर कर मशहूर न हुआ,
कोई आंख मार के मशहूर हो गया।
साहब और माननीयों का तांता ,मरने के बाद लगता है।
मातम में आये माननीयों के बोलने पर, जिंदाबाद लगता है।
सत्ता में आये अभी कुछ साल ही हुए,
न जाने श्रीमान को कितना गुरुर हो गया।
कोई भूख से मर कर मशहूर न हुआ,
कोई आंख मार के मशहूर हो गया।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी