कोई भी बात तुम्हारी कही हुई न हुई
कोई भी बात तुम्हारी कही हुई न हुई
तभी तो देखो मुकम्मल ये दोस्ती न हुई
हमारा दिल तुम्हें अब तक नहीं भुला पाया
भले ही अपनी मुलाकात फिर कभी न हुई
सजाते सपने रहे हमसफर बने हम तुम
कोई भी राह मगर अपनी एक सी न हुई
तुम्हीं से मस्तियाँ रौनक बहारें आती थीं
तुम्हारे बाद ये महफ़िल जवां कभी न हुई
निकलता चाँद रहा पर हुआ उजाला नहीं
तुम्हारे बिन कोई भी रात चाँदनी न हुई
रहे उदास ही तुमसे बिछड़ के इतने हम
खुशी मिली भी अगर कोई तो खुशी न हुई
अकूत पाई नहीं ‘अर्चना’ भले दौलत
ख़ुदा का शुक्र है कोई कभी कमी न हुई
05-01-2020
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद