कोई बात बने
कोई बात बने
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मोम के पिघलने का
सदियों से रहा है दस्तूर
कोई पत्थर अब पिघला
तो कोई बात बने
ऐसा भी नही
कि हर शाम हो हसीन
धूप पर पानी छिड़क
तो कोई बात बने
लड़खड़ाकर मन्दिर का
दिया करता है रोशन
घर के परदे को सिल
तो कोई बात बने
मौलिक व अप्रकाशित”-Dipu