कोई नहीं महान बना है
फूलों के बिस्तर पर जन्मा पला बढ़ा उल्लासों में ।
जिसको प्रचुर मिली सुविधाएं डूबा भोग विलासों में ।
है भूमिका भाग्य की लेकिन अथक परिश्रम किए बिना,
कोई नहीं महान बना है अब तक के इतिहासों में ।
बड़े बड़ों के साथ खड़े होने में क्या महानता है ?
हृदय तुच्छ तो हाथ बड़े होने में क्या महानता है ?
है आकलन तुम्हारा इससे , किस पथ पड़ते पांव युगल ;
जिस सीमा तक संकट सहते, मानो उसे वास्तविक बल ;
गुणहीनों के गुणगानों में संगीत गुने तो क्या पाया?
पदचिन्हों पर चलने वाले पथिक बने तो क्या पाया?
नाविक हो तुम धारा के संग कभी बहाओ अपनी नौका!
और कभी विपरीत दिशा में खेने का भी ढूंढो मौका!
कभी हवा विपरीत देखकर भय के मारे मत ढह जाना।
कभी प्रतीक्षा में मुहूर्त की खड़े किनारे मत रह जाना।
चाहे चलो दिशा धारा की, चाहो तो विपरीत चलो ,
चलना तो प्रत्येक दशा में , थक कर हारे मत रह जाना।।
संजय नारायण