कोई दौलत पे, कोई शौहरत पे मर गए
कोई दौलत पे
कोई शौहरत पे मर गए
इक शख्स हम ही थे मुर्ख
जो सांवले मोहन पे मर गए
वैसे मोहन कहू या मोहिनी कहू उनकों
दोनों प्रभु के ही तो नाम हैं
परन्तु! इक दफ़ा तो उनके दर्शनं पाने हेतु
अपने परम मित्रों से लड़ गए
माखन-मिसरी जैसी बातें
या काली जुल्फें या दो प्यारी आँखें
कुछ तो था मन्त्रमुग्ध करने वाला
जो इक गणित के छात्र कि वो
कैलकुलेशन खराब कर गए !
बचकानी वार्तालाप सुन हमारी
परम मित्र ललित ने कहा
लगता है गुरु….. “तुम” प्रेम में पड़ गए
प्रेम और हमें…….
ऎसा कहकर हम अपनी बात से मुकर गए !
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