कोई दीवारों दर हमारा ना हुआ है।
कोई दीवारों दर हमारा ना हुआ है।
जमानें में दौलत पे हर रिश्ता टीका है।।1।।
यह दिले रूहे मोहब्बत है मेरे यारों।
किसी का भी दिल उसका ना हुआ है।।2।।
खिलाया था गुलो को आफताब ने।
जो इन हवाओं को गंवारा ना हुआ है।।3।।
जिन पे था दिल ए अकीदा ज्यादा।
वह बेवफ़ा दिल से हमारा ना हुआ है।।4।।
गरीबे इश्क परवान कहां चढ़ता है।
अमीरों में गरीब ए रिश्ता ना हुआ है।।5।।
मैं खूब जनता हूं अपने महबूब को।
जाना मजबूरी थी बेवफ़ा ना हुआ है।।6।।
मुस्कुराने पर जाओ दर्दे गम ना है।
तुमको शायद यह धोखा सा हुआ है।।7।।
माकामे पता मत पूँछों मुझसे तुम।
बंजारा हूं हमारा घर कहीं ना बना है।।8।।
क्या बताए हम हाल ए दोस्ती का।
तिश्नगी का मदद ए सहरा ना हुआ है।।9।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ