#ग़ज़ल-17
मैं चल रहा हूँ इतना संभल कर मानो जीवन समर है
अब तक सही हूँँ ये दोस्तों की मोहब्बत का असर है/1
मिलती यहाँ देखी धोखों की सौग़ातें हर क़दम पर
अब आदमी की बातों में मीठापन दिल में ज़हर है/2
अकड़े रहोगे तो टूटोगे यह तय है जान लो तुम
बचता वही आँधी तूफ़ानों में झुकता जो शजर है/3
तू आइने-सा लगता है सज़दा करता हूँ सदा मैं
ये वक़्त बदले तू ना बदले ऐसी तेरी डगर है/4
तू जीत सकता है हर बाज़ी पर कोई दाँव तो चल
मायूस होकर झुक जाए वो खुद से हारी नज़र है/5
प्रीतम कभी हक से अपना कहना मैं खुद को लुटा दूँ
दिल के गगन में रहता बस इक तू ही बनके क़मर है/6
-आर.एस.प्रीतम
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