कोई जगह नहीं दिल में किसी भी डर के लिए
कोई जगह नहीं दिल में किसी भी डर के लिए
वतन की मिट्टी ही सब कुछ है मेरे सर के लिए
अँधेरा करके यहाँ कुछ पलों का जीवन में
ये रात चल ही पड़ी अब किसी सहर के लिए
अगर कभी कोई अपना दगा भी कर जाए
यकीन करना भी मुश्किल है उस खबर के लिए
ये ज़िंदगी भी कहाँ ज़िंदगी रही उनकी
ये नाम देश के कर दी है उम्रभर के लिए
निपटना उनसे भी होगा जो दिखते हैं अपने
इधर का खाते हैं और जीते हैं उधर के लिए
वतन पे अपने जो कुर्बान हो गए ‘सागर’
गरूर करती है माँ ऐसे ही पिसर के लिए