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18 Mar 2020 · 1 min read

कोई गीत बनाते नहीं बना

सच्चाई क्या है सबको बताते नहीं बना
के फर्ज मीडिया से निभाते नहीं बना

छलके हुए गरीब के आँसू जमीन पर
अखबार के पन्नों से उठाते नहीं बना

अधिकार माँगने को जो सड़कों पे आ गई
वो भीड़ चैनलों से दिखाते नहीं बना

बिगड़े हुए हालात में ईमान मारकर
कोशिश की मगर लाश छिपाते नहीं बना

रुक-रुक के चल रही है साँस लोकतंत्र की
शायद गला भी तुमसे दबाते नहीं बना

माना के वो अच्छा है पर उसमें भी कमी है
अफसोस! कलम तुमसे चलाते नहीं बना

जब मीडिया सत्ता के कदम चूमने लगी
‘संजय’ से कोई गीत बनाते नहीं बना

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