कोई काम न आया
**** कोई काम न आया *****
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चाहे अपना हो चाहे पराया,
मौके पर कोई काम न आया।
हर कोई अपना मतलब साधें,
बंटते नफे में आधे – आधे,
कभी भेद किसी का नहीं आया।
मौके पर कोई काम नही आया।
जगत में हो गई प्रीत पराई,
मिलती रहती पग-पग रुसवाई,
जग में जन निज में है भरमाया।
मौके पर कोई काम नहीं आया।
अपनी बांसुरी अपना राग है,
पल में आती मुँह से झाग है,
दिलासा किसी ने नहीं दिलाया।
मौके पर कोई काम नही आया।
मनसीरत मन मिट्टी का माधो,
काज सदा ही औरों के साधो,
हो रहा साख-राख का सफाया।
मौके पर कोई काम नही आया।
चाहे अपना हो चाहे पराया।
मोके पर कोई काम नही आया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)