कोई अपना नहीं
सुबह
सोकर उठी तो
देखा
मेरे तकिये पर
फूल बिछे हैं
रंग थे इसमें
मेरे आंसुओं के
काजल के
मेहंदी के
लिपिस्टिक की लाली के
नेल पॉलिश की पपड़ियों की जाली के
मेरे पसीने की बूंदों के
मेरे बदन की खुशबुओं के
मेरे केशों के रेशमी गुच्छों के
मेरी पलकों से झड़ी चिलमन की लड़ियों के
मेरी कांच की चूड़ियों से निकले नगों के
मेरे कान से गिरे झुमके की छोटी बालियों के मोतियों के
मेरे माथे से छूटी बिंदिया के
मेरी आंखों से झड़े हरसिंगार के फूलों के
सपनों के
रंग हैं यह सारे मेरे अपने लेकिन
मेरा फिर भी कोई अपना नहीं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001