कोंपलें फिर फूटेंगी
कितना भी ये शीत कँपा दे
और हेमन्त सब पात झरा दे
किन्तु शेष जीवन जब तक है
नई कोंपलें फिर फूटेंगीं
एक एक कोंपल से फिर
जाने कितने पात बनेंगे
मात्र पात तक ही सीमित न
पुनः पुनः फल फूल खिलेंगे।
तरुवर ये फिर लहराएगा
फिर इस पर पक्षी कूजेगें
और डाल शाख पर रस्सी को
बच्चे झूला भी झूलेंगे ।
बस ऐसा ही है ये जीवन
खोना पाना सब मन का भ्रम।
किन्तु इसी भ्रम में भ्रमकर
मानव निज नयन भिगोता है
कुछ पाकर हंसने लगता है
खोते ही कुछ फिर रोता है ।
बनना, मिटना फिर से बनना
जीवन की यही कहानी है।
न शेष चिरंतन रूप कोई
बहती धारा सी रवानी है ।