‘कोंच नगर’ जिला-जालौन,उ प्र, भारतवर्ष की नामोत्पत्ति और प्रसिद्ध घटनाएं।
🌹नामोत्पत्ति
👉प्राचीन काल में यहां पर एक प्राकृतिक झील थी। इस प्राकृतिक झील पर क्रेन सहित कई अन्य पक्षियों का भी आना जाना रहता था। झील में अनवरत जल झरता रहता था। झील के पास प्राकृतिक सुंदरता के आकर्षण से सबको लुभाने वाला एक लघु पर्वत था। इसी मनमोहक प्राकृतिक स्थान पर ईस्वी सन् के पूर्व ‘क्रौंच ऋषि’ ने तपस्या की थी ।
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मेरी कृति “क्रौंच सु ऋषि आलोक” खंड काव्य के “आश्रम का विकास” खंड की एक कुंडलिया….
गिरिवर के पश्चिम तरफ एक प्राकृतिक झील।
दक्षिण-पूरव झर रहे निर्झर का शुभ तीर।।
निर्झर का शुभ तीर, सुरक्षित जानवरों से।
इधर बनी तपभूमि, मंत्रमय पुण्य स्वरों से।।
‘नायक’ भॅंवरे यहाॅं, वहाॅं पर हर्षित तरुवर।
खग कलरव-उत्कर्ष, प्रकृति सद्ऑंगन गिरिवर।।
👉साहित्यपीडिया पब्लिशिंग,नोएडा,भारतवर्ष से प्रकाशित मेरे (पं बृजेश कुमार नायक के) शोधपरक ग्रंथ ‘क्रौंच सु ऋषि आलोक’ खंड काव्य के द्वितीय संस्करण ISBN 978-81-937022-8-4 के अनुसार ‘क्रौंच ऋषि’ के नाम पर इस शहर का नाम कोंच पड़ा।
. देखिए मेरी कृति ‘क्रौंच सु ऋषि आलोक’ खंड काव्य की ‘कोंच नगर का विकास’ खण्ड की कुंडलिकाओं की कुछ पंक्तियां…….
छोटा सा घर बन गया, क्रौंच पड़ गया नाम।
दक्षिण दिश गिरि-तट सुखद, सुंदर यौवन धाम।।
घर अब मजरारूप में, करने लगा विकास।
क्रौंच नाम से र हटा, कोंच बना जनभाष।।
🌹प्रसिद्ध घटनाएं
👉ईस्वी सन् के पूर्व क्रौंच ऋषि ने यहां पर तपस्या की थी इसलिए यह स्थान क्रौंच ऋषि की तपोभूमि के लिए प्रसिद्ध है।
👉चौड़ा-काल में बावन गढ़ों की लड़ाई के लिए सैन्य तैयारी हेतु यह स्थान दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के पक्ष की सेना के लिए बनाए गए चौंड़ा-काल के ‘सैन्य प्रशिक्षण केंद्र’ के लिए भी विख्यात है।
👉 ‘चौंड़ा’ दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान की सेना का अधिपति था।
👉बैरागढ़,जिला जालौन,उत्तर प्रदेश,भारतवर्ष में ‘शारदा माता के पावन मंदिर’ के समीप आल्हा और दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के बीच ‘बावन गढ़ों की लड़ाई के रूप में’ अंतिम युद्ध हुआ था, जिसमे ‘चौंड़ा’ ने वीरगति प्राप्त की थी।
👉चौड़ा-काल में प्राकृतिक एवं मनमोहक इस स्थान के प्राकृतिक सौंदर्य का सबसे ज्यादा क्षरण हुआ।
देखिए मेरी कृति ‘क्रौंच सु ऋषि आलोक’ खंड काव्य/शोधपरक ग्रंथ के द्वितीय संस्करण की रचना ‘अमर कोंच इतिहास’ की कुछ पंक्तियां
महायुद्ध की शंका, आए चंद्रभाट सॅंग भूप।
क्रौंच सु ऋषि तपभू खुदवाई समरभूमि अनुरूप।
झील बॅंट गई दो तालों में, अब भी है अवशेष।
ताल भुॅंजरया इक तो दूजा चौंड़ा-ताल ‘बृजेश’।
इसी क्रम में देखिए
चौड़ा-काल में इस स्थान पर हुए दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के पक्ष की समस्त सेना के सैन्य प्रशिक्षण पर कुछ पंक्तियां …….
सैन्य प्रशिक्षण चरमरूप पर, लड़ते ज्यों दो राज।
बैरागढ़ रणभूमि बनेगी, पहनू विजयी ताज।
👉 चौंड़ा को चौंड़िया नाम से भी जाना जाता है।
ऊॅ नमः शिवाय।
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🌹👉मेरी (पं बृजेश कुमार नायक की) कृति ‘क्रौंच सु ऋषि आलोक’ खण्ड काव्य का द्वितीय संस्करण साहित्यपीडिया पब्लिशिंग, नोएडा, भारतवर्ष से प्रकाशित है और अमेज़न-फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।