कॉलेज के दिन बिंदास
कॉलेज के दिन बिंदास
(जब पहली बार कॉलेज गए तब की एक कविता)
जी करता है नोच डालूँ इस कागज़ की मोटी पुड़िया को।
फेंक डालूँ, कहीं दूर कहीं इस कलम रूपी गुड़िया को।
समझ नहीं पाता, क्या है ये केमिकल कंपाउंड और मिक्सर।
पर सरजी देते ही जाते नित लेक्चर आफ्टर लेक्चर।
आते ही कहते,करना है आज hcl पर प्रैक्टिकल।
दूसरे साहब आकर कहते सॉल्व करो न्यूमेरिकल।
कोई आकर पढ़ा जाता-टेली,पेरिस्कोप और लेंस।
फिर उपस्थित हो जाता कोई ट्रांसलेशन में टेंस।
तदन्तर आए एक पढ़ाने, प्राचीन भारत की एक झलक।
शायद सिनेमा हो,सोचकर सामने पट्ट पर टिक गई पलक।
एक सर बता रहे थे त्रिभुज,बहुभुज, कोण, समकोण।
सुन सुनकर लगा मुझे,अरे यह तो बच्चन का है टोन।
किये इशारे,मित्र हमारे,फिर क्या,बंक किया क्लास।
मस्ती चहुँ ओर बरसती, कॉलेज के दिन बड़े बिंदास।
-©नवल किशोर सिंह