कैसे शुक्र करूं मैं माता
कैसे शुक्र करूं मैं माता
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कैसे शुक्र करूं मैं माता,
तेरे सकल अहसानों का।
ज्ञान दिया है शारदे तूने,
सागर!से भंडार का ।।
आई थी मां द्वारे तेरे,
लेकर अपनी फरियाद सारी।
तूने पुकार सुनी हृदय की,
जिससे मैं थी सदा ही हारी।।
तूने बहुत हमको है दिया,
पर! नादान मानुष जाना नहीं
तूने ही मां!सबका बेड़ा पार किया।।
तू ही सृष्टि,तू ही माता,
तुमसा और कोई न दूजा।
तुम हो सबकी ज्ञान दायिनी,
तेरे जैसी कोई और न पूजा।।
माता एक अर्ज है मेरी,
मुझको देना आशीष अपूर।
में चाहे कितनी गल्ती करूं,
लेकिन! तुम न करना उर से दूर।।
सभी सुनाते अपनी पीड़ा, भक्त तुम्हारे।
तुम सबकी पीड़ा हरती, कष्ट सभी के हारे।।
कैसे शुक्र करूं मैं माता ——
तेरे सब अहसानों का ——
सुषमा सिंह*उर्मि,,