कैसे लगा
कैसे लगा
जिले में एकमात्र आवासीय केन्द्रीय शैक्षिक संस्था होने के कारण हमारे विद्यालय की विभिन्न गतिविधियों का निरिक्षण (पेनल इंस्पेक्शन) हेतु हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल से डिप्टी कमिश्नर सर आये हुए थे |
आज हमारे मेस (भोजनालय) में नाना प्रकार के व्यंजन बनाए गये थे | पनीर, जलेबी, पुड़ी, खीर, इत्यादि | पेनल इंस्पेक्शन के कारण आज सभी बच्चे नियत समय से पांच मिनिट जल्दी आ गए थे |
नियमानुसार भोजन मेस काउंटर से ही प्राप्त होता था | जिसमे कनिष्ठ और वरिष्ठ विद्यार्थियों को प्रथक पंक्ति में खड़े होकर भोजन प्राप्त करना होता था | वरिष्ठ विद्यार्थी होने के कारण मुझे अपनी पंक्ति में खड़े होना था परन्तु त्रुटीवश मैं कनिष्ठ विद्यार्थियों की पंक्ति में जाकर खड़े हो गया | पास ही में प्राचार्य मेडम मुझे काफी समय से देख रही थी | तेजी से मेरे पास आते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि-
“क्यों रे ! “कैसे लगा ?“
सुनकर मुझे अजीब लगा, मन ही मन सोचा कि केवल मुझसे ही मैडम क्यों पूछ रही है कि आज का जो विशेष भोजन का अरेंजमेंट है तुम्हे कैसा लगा | ये पूछ रही होगी | हडबडाहट में मैंने भी कह दिया /
“जी मेडम बहुत अच्छा लगा | थैंक्स मेंम इतना अच्छा लंच अरेंजमेंट करने के लिए |”
“अरे मैं लंच के बारे में नही पुछ रही हूँ कि ”कैसा लगा” मेरे कहने का मतलब है कि तुम सीनियर बच्चे होकर जूनियर की लाइन में कैसे लगे हो” |
“ओह अच्छा !! सॉरी मेम”
इतना कहकर मैं चुपचाप अपनी पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया | परन्तु मेरे अन्दर से हँसी ही नही रुक रही थी | जब भी ये वाकया याद आता है तो स्कूल की वो मधुर यादे और नादानियाँ चेहरे पर मुस्कराहट बिखेर देती है |
© गोविन्द उईके