कैसे ये समझाऊँ तुझे।
तू खो रही है खुद को,
कैसे ये समझाऊँ तुझे।
मोहोब्बत ना सही,
तेरा ख़्याल तो आज भी है।
पहाड़ी नदियों सी साफ है तू,
ये ठहरे हुए पानी हैं।
इस चमकीले पर्दे को हटाकर,
कैसे ये दिखाऊँ तुझे।
तू रूहों में उलझी रेहती है,
ये जिस्मों से बंधे हैं।
कितनी अनमोल है तू,
कैसे ये समझाऊँ तुझे।
क्या मैंने ही पेहचाना नहीं,
ये मन अब पूछता है खुद से।
हमारा वो रिश्ता ना सही,
तेरी ख़ुशी में ख़ुशी तो आज भी है।
– सिद्धांत शर्मा