कैसे मुकर जाओगे — डी के निवातिया
यंहा के तो तुम बादशाह हो बड़े शान से गुजर जाओगे ।
ये तो बताओ खुदा कि अदालत में कैसे मुकर जाओगे
चार दिन की जिंदगानी है मन माफिक गुजार लो प्यारे।
आयेगा वक्त ऐसा भी खुद की ही नजर से उतर जाओगे ।।
लूट खसौट का ज़माना है जी भर के हाथ आजमा ले ।
एक न एक दिन तो जमाने के आगे हो मुखर जाओगे।।
ये जो रंग चढ़ा है तुम्हारे कँवल पर सुर्ख गुलाब सा।
लगी जो बद्दुआ गरीब की सूखे पत्तो से बिखर जाओगे।।
असर तो हमेशा न किसी का रहा है और न ही रहेगा।
टूटेगा जिस रोज़ अहम खुद इस वहम से उबर जाओगे ।।
आये थे खाली हाथ जहाँ में, खाली हाथ ही जाना है।
होगा ये इल्म जिस रोज़ खुद ही रब के दर पसर जाओगे
वक्त अभी भी बाकि है खुदा की इबादत करने के लिये ।
मान लो सलाह “धर्म” की, इस जग में सुधर जाओगे ।।
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डी के निवातिया
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