कैसे-कैसे है लोग !
कहीं भी
कुछ तो भी
लिख देते है लोग !
कहीं भी
कुछ तो भी
बोल देते है लोग !
न वक़्त देखते है,
न अपनों को,
न समाज को–
क्यों मानवता की
धज्जियां
उड़ा देते है लोग..?
कैसे-कैसे है लोग !
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रचयिता: प्रभुदयाल रानीवाल=
====*उज्जैन*{मध्यप्रदेश}*===
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