कैसे इंसान हो कि हर बात पे हँस देते हो??
कैसे इंसान हो कि हर बात पे हँस देते हो??
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कभी खुद को भुला गैरों के लिए हँस देते हो
कैसे इंसान हो कि हर बात पे हँस देते हो?
बेवफ़ा यार ने कितना रुलाया दिल को मेरे
एक तुम हो कि सियाह रात पे भी हँस देते हो?
उठ रहा दिल से धुआँ औ जल रही आँखें मेरी
और तुम बेवफ़ा सौगात पे भी हँस देते हो?
ऐसे परेशाँ तो कभी तुम न थे मेरे यारा
जलते अरमान भुलाने के लिए हँस देते हो।
चल दिए छोड़ के दुनिया से छिपा हसरत अपनी
कैसे तुम हो सजी मरियत पे भी हँस देते हो?
याद करके तुम्हें रोती रहेगी दुनिया हरदम
कैसे तुम हो जो ना होकर भी हँस देते हो?
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)