कैसें दिखे स्वराज,हृदय है जब बिन भाव
भाव बिना गणतंत्र दिन, घटना बना सुजान|
गुण गायन कर बीर का, भूले दे सम्मान||
भूले दे सम्मान, चल गई भ्रम की आँधी|
फूल-माल गह टँगे, पुनः खूँटीं पर गांधी||
कह “नायक” कविराय, चली पुनि जग की नाव|
कैसें दिखे स्वराज, हृदय है जब बिन भाव||
बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता