कैसी…
कैसी….
मैं एक किताब
तुम कहानी जैसी
मैं ठहरा सागर
तुम रवानी जैसी
तेरी ही स्पृहा
तू वनिता ऐसी
पाता मन विश्रांत
तेरी छुअन ऐसी
साँसों में समाए
तू सुरभि वैसी
मैं हुआ परिणत
तेरी मोहब्बत वैसी
भुला दूँ तुम्हें
ये याचना कैसी
तू जो हो विमुख
तो ज़िंदगी कैसी
रेखांकन।रेखा