कैसी हो तुम ..स्त्री
बहती नदी की धार सी
ज्यों चूल्हे में जलती आग सी।
कभी देहलीज पर जलते दीप सी
तो कभी आले में जलती मोमबत्ती सी ..
पुराने जमाने की लालटेन या चिमनियों सी..।
कैसी हो तुम स्त्री?
किस रूप को सराहूँ ,किसे दुलराऊँ
किसे मनाऊँ.,किसे रिझाऊँ…..!!
बता दो न , कुछ बोल दो न !
पिता के काँधे डोली,माँ की गोद में खेली
भाई बहनों के संग की वो हँसी ठिठोली…!
वर्जनाओं ने ठिठका दिया , आँखों ने डरा दिया।
पहन लाल जोड़ा तब बाबुल ने पराया किया।
दहलीज पर साँझ का दिया बारती
बन गयी तू कब आँगन की तुलसी।
कब छुअन में था नेह भरा
कब नेह ने था तुझे छला हुआ।
मौन होंठों ,नत नम आँखों से
बह हृदय भीतर छिपा लिया।
अवगुंठन में ढाँकना ,एब भी आ गया।
स्त्री बोल , तुझे क्या समझूँ
पाषाण सम या बंद हथेलियों की
झिरी से शनैःशनैः खिसकती बालू!!
कौन सी उपमा दूँ,
क्या ही नाम मैं दूँ?
प्यार ,इश्क देवी ,ममता,शक्ति ,
लक्ष्मी दुर्गा या अरूँधती
या कहूँ अहिल्या,सीता, द्रोपदी
कोई एक नाम ,एक रूप नहीं हो तुम।
हर युग की हर नारी का अंश विद्यमान है
फिर बता …कैसे समझू तुझे .।
आँगन की बेल पत्री सी ,
नीम चढ़ी गिलोय सी..,
मंदिर के द्वारे सी ,
छत की सर्द धूप सी ,
उनमुक्त बयार सी,
बहती पुरबैया सी …या
दहकते टेसू सी …!!
मधुमास में प्रिय पुकार सी
रातरानी तले इंतजार सी…।
कैसी तो हो तुम स्त्री …
तुझे क्या कहूँ ?
स्वरचित
मनोरमा जैन ‘पाखी’