कैसी है ये जिंदगी
कैसी है ये जिंदगी
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कैसी है ये जिंदगी
समझ किसी का न आता है।
तर्क कुतर्क करके
मुरख ब्यर्थ समय गंवाता है।।
हाड़ मांस पुतला
को सत्य स्वरूप मानता है ।
नाशवान है ज़िंदगी
समझ न किसी को आता है।
कैसी है ये जिंदगी
समय चक्र को चलाता है।
राजा रहे न रंक
समय होत सब जाता है।।
कैसी है ये जिंदगी
न किसी का चल पाता है।
कभी राजा कभी रंक
कभी फकीर हो जाता है।।
दुःख सूख की नदियां बहती
भंवर पड़ी मझधार।
एक भरोसे है, एक विश्वास
प्रभु राम लगाय पार।।
कैसी है ये जिंदगी
समझ किसी का न आता है।
नाशवान है जिंदगी
पर भी अहंकार हो जाता है।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग