कैसी है तू मां
माँ शब्द ऐसा जिसमें सिमट जाए सारा जहाँ ,बच्चों की पुकार से पहले जान ले उनकी आह.
अभी एक महिना पहले ही तू दुनिया को अलविदा कर गयी, तेरी कमी इतनी खली कि ज़िन्दगी ही बिखर गयी.
दुनिया इतनी आगे बढ़ गयी, पर बनी नहीं वो मशीन,जिससे तुझसे कुछ गुफ्तगु कर पाऊँ
तू फिर से फैलाए बाहें और मैं उसमें गुम हो जाऊं.
काश फिर से आते हनुमान जो सीता माँ की तरह मेरी माँ की भी खबर लाते, उसकी खैरियत मुझे और मेरी उसे बतलाते .
तेरी याद में रही काफ़ी परेशान , फिर एक दिन आइने मे खुद को देख रह गयी हैरान,
मंद मुस्काई और खुद से ही बोली, स्मिता, तूने भी तो माँ की ही छवि है पाई.
अब ज़िन्दगी थोड़ी खुशनुमा हो गयी, क्योंकि जब भी तेरी याद आई, आइने को निहार
माँ बन खुद से ही पूछ लेती हूँ ये सवाल, केसी है तू बेटा, क्या है तेरा हाल ?
अब आइना भी माँ बन देता है ज़वाब,न हो उदास मैं तो हूँ सदा तेरे आस पास
क्योंकि मैं हूँ तेरी माँ, मैं हूँ तेरी माँ…
(स्मिता सप्रे)