‘कैसी विडम्बना मेरे भारत की ‘
‘कैसी विडम्बना मेरे भारत की ‘
कैसी विडम्बना मेरे भारत की …………
यहां कन्या लक्ष्मी का अवतार ,
फिर भी वो मरती है बे-हिसाब
कराते है ये भूर्ण हत्या , लिंग की है ये जाँच l
कैसी विडम्बना मेरे भारत की …………
जहां नारी सुंदरता की मूर्त ,
फिर क्यों है किसी और धन की ज़रूरत ?
जिसे है ,हमारा वज़ूद ,
क्या…… ?
आज उसका है कोई वज़ूद
क्यों जलती है नारियाँ आज भी
दहेज के नाम पर ?
क्यों……… ?
होती है सती वह पति संग l
क्यों है….. ?
हर बंदिश में वो ……….
क्यों नही तोड़ती परम्परों की जंजीर वो ………
भटकती है … आज भी वो अपने वज़ूद को ..
खोज रही है ,अपना अस्तित्व वो l
वो देती है सबको सहारा,
फिर क्यों…….. ?
आज वो बे-सहारा l
क्यों…….. ?
नही नारियों का सम्मान
क्यों…………. ?
वो दे इम्तहान …..
क्यों नही उसका सर्वोच्च स्थान …
वो जननी है ,लक्ष्मी है ,दुर्गा है l
जीवन का सार है वो
वहीं जीवन है
फिर क्यों …………?
लेखिका -मीनू यादव