कैसी विडंबना ख्यालों से
कब तक चीख दबी रहेगी, हैवानो के हाथो से
कब तलक तड़पेगी नारी, जुल्मी, विक्षिप्त, विचारों से
कहने को,ब्रह्मांड की शक्ति है, करते सब उसकी भक्ति है
ये कैसा मुखौटा लगा हुआ,विडम्बना कैसी ख्यालों से
शर्मशार हुए रिश्ते,धरा पर ,उन इंसानी दुष्कर्मियो से
जिनकी गोद मे खेलना था, खेला उसी ने सांसो से
क्या खता की उस मासुम ने,जो तोड़ा उसके विश्वासो को
अब न जी पाएगी वो,हुए तार-तार संबंधो के आभासो से
पराई नार को देना सम्मान, सीख लेते रावण से
दुध पीते से करना प्यार, लेते भीख माँ के आंचल से
सोलहवे साल के सावन को, झुलने देते झुलो के झोकों संग
तो कभी न होता तन मन उनका जीवन कटी पतंग सा
वो चीख चीख कर पूछ रही, सवाल,वोट के दरकारो से
मन हुए क्यूं कठोर नहीं तुम्हारे, इन हैवानो के कामो से
गर यू ही खुले घुमते रहेंगे, कच्ची कलियो को नोचने वाले
फिर कभी नहीं बचा पाओगे, अपनी गुड़िया को हत्यारों से
???☹☹☹
रेखा कापसे
होशंगाबाद,(म.प्र.)